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Introduction Act Sections Schedule Conclusion
Typology: Exercises
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माध्यस्थम् पंचाटᲂ के पर् वतर् न से संबंिधत िविध को समेिकत और संशोिधत करने के िलए तथा सुलह से संबंिधत िविध को भी पिरभािषत करने के िलए और उनसे संबंिधत या उनके आनुषंिगक िवषयᲂ के िलए अिधिनयम उेिशका — संयुक् त राष् टर् अं तरराष् टर् ीय ᳞ ापार िविध आयोग ने 1985 मᱶ अंतरराष् टर् ीय वािणिज्यक माध्यस्थम् िवषयक सं० रा० अं० ᳞ ा० िव० आ० आदशर् िविध को अंगीकार िकया है ;
और संयुक् त राष् टर् की महासभा ने िसफािरश की है िक सभी देश, माध्यस्थम् पर् िकर्याᲐ सं बंधी िविध की एकरूपता की वांछनीयता और अंतरराष् टर् ीय वािणिज्यक माध्यस्थम् पित की िविनिदष् ट आवश्यकताᲐ को ध् यान म ᱶरखते हु ए उक् त आदशर् िविध पर सम्यक् रू प से िवचार करᱶ ;
और संयुक् त राष् टर् अं तरराष् टर् ीय ᳞ ापार िविध आयोग ने 1980 मᱶ सं० रा० अं० ᳞ ा० िव० आ० सु लह िनयमᲂ को अंगीकार िकया है ;
और संयुक् त राष् टर् की महासभा ने उन दशाᲐ मᱶ जहां अंतरराष् टर् ीय वािणिज्यक सं बंधᲂ के संदभर् मᱶ कोई िववाद उद्भू त होता है और पक्षकार सु लह के माध्यम से उस िववाद का सौहादर्र् पूणर् िनपटारा चाहते हᱹ, उक् त िनयमᲂ के उपयोग की िसफािरश की है ;
और उक् त आदशर् िविध और िनयमᲂ ने अंतरराष् टर् ीय वािणिज्यक सं बंधᲂ से उद्भू त होने वाले िववादᲂ के उिचत और दक्ष िनपटारे के िलए एकीकृत िविधक संरचना की स् थापना के िलए महत्वपू णर् योगदान िकया है ;
और यह समीचीन है िक पूवᲃक् त आदशर् िविध और िनयमᲂ को ध् यान म ᱶ रखते हु ए माध्यस्थम् और सुलह के संबंध मᱶ िविध बनाई जाए ;
भारत गणराज्य के सᱹतालीसवᱶ वषर् मᱶ संसद् ᳇ारा िनम् निलिखत रू प म ᱶयह अिधिनयिमत हो :—
(घ) “माध्यस्थम् अिधकरण” से एक मातर् मध्यस्थ या मध्यस्थᲂ का कोई पै नल अिभपर्ेत है ; (ङ) “न्यायालय” से िकसी िजले मᱶ आरंिभक अिधकािरता वाला पर् धान िसिवल न् यायालय अिभपर्े त है और इसके अन्तगर् त अपनी मामूली आरंिभक िसिवल अिधकािरता का पर् योग करने वाला उच्च न् यायालय भी है , जो माध्यस्थम् की िवषय-वस्तु होने वाले पर्श् नᲂ का, यिद वे वाद की िवषय-वस्तु होते तो, िविनश् चय करने की अिधकािरता रखता, िकन्तु ऐसे पर् धान िसिवल न् यायालय से अवर शर्े णी का कोई िसिवल न् यायालय या कोई लघु वाद न् यायालय इसके अन्तगर् त नहᱭ आता है ; (च) “अंतरराष् टर् ीय वािणिज्यक माध्यस्थम् ” से ऐसे िववादᲂ से संबंिधत कोई माध्यस्थम् अिभपर्े त है जो ऐसे िविधक संबंधᲂ से, चाहे वे संिवदात्मक हᲂ या न हᲂ जो भारत म ᱶ पर् वृ ᱫ िविध के अधीन वािणिज्यक समझे गए हᲂ, उद्भूत हᲂ और जहां पक्षकारᲂ म ᱶसे कम से कम एक— (i) ऐसा कोई ᳞ िष् ट है जो भारत से िभन् न िकसी देश का रािष् टर् क है या उसका अभ्यासतः िनवासी है ; या
(ii) ऐसा एक िनगिमत िनकाय है, जो भारत से िभन् न िकसी देश मᱶ िनगिमत है ; या (iii) ऐसी कोई कंपनी या संगम या ᳞ िष् ट िनकाय है िजसका केन्दर्ीय पर् बं ध और िनयंतर्ण भारत से िभन् न िकसी देश से िकया जाता है ; या
(iv) कोई िवदेश की सरकार है ; (छ) “िविधक पर् ितिनिध ” से वह ᳞ िक् त अिभपर्े त है जो िकसी मृत ᳞ िक् त की सम्पदा का िविध की दृ िष् ट मᱶ पर् ितिनिधत्व करता है , और ऐसा कोई ᳞ िक् त, जो मृतक की सम्पदा म ᱶ दखलन्दाजी करता है , और, जहां कोई पक्षकार पर् ितिनिध की है िसयत मᱶ कायर् करता है वहां वह ᳞ िक् त िजसे इस पर् कार कायर् करने वाले पक्षकार की मृत् यु हो जाने पर सम्पदा न् यायगत होती है , भी इसके अंतगर्त आता है ;
(ज) “पक्षकार” से माध्यस्थम् करार का कोई पक्षकार अिभपर्े त है । ( 2 ) पिरिध — यह भाग वहां लागू होगा जहां माध्यस्थम् का स् थान भारत म ᱶ है ।
( 3 ) यह भाग तत्समय पर् वृ ᱫ ऐसी िकसी अन्य िविध पर पर् भाव नहᱭ डाले गा, िजसके आधार पर कितपय िववाद माध्यस्थम् के िलए िनवेिदत न िकए जा सकᱶगे ।
( 4 ) यह भाग धारा 40 की उपधारा ( 1 ), धारा 41 और धारा 43 को छोड़कर तत्समय पर् वृ ᱫ िकसी अन्य अिधिनयिमित के अधीन पर्त् ये क माध्यस्थम् को इस पर् कार लागू होगा मानो िक वह माध्यस्थम् िकसी माध्यस्थम् करार के अनुसरण मᱶ था और मानो िक उक् त अन्य अिधिनयिमित कोई माध्यस्थम् करार थी, िसवाय इसके िक जहां तक इस भाग के उपबंध उस अन्य अिधिनयिमित या उसके अधीन बनाए गए िकन्हᱭ िनयमᲂ से असंगत है ।
( 5 ) उपधारा ( 4 ) के उपबंधᲂ के अधीन रहते हु ए और जहां तक तत्समय पर् वृ ᱫ िकसी िविध ᳇ारा या भारत और िकसी अन्य देश या देशᲂ के बीच िकसी करार मᱶ अन्यथा उपबं िधत है, उसके िसवाय, यह भाग सभी माध्यस्थमᲂ को और उनसे संबंिधत सभी कायर्वािहयᲂ को लागू होगा ।
( 6 ) िनदᱷशᲂ का अथार्न् वयन — जहां इस भाग मᱶ, धारा 28 को छोड़कर, पक्षकार कितपय िववा᳒कᲂ को अवधािरत करने के िलए स् वतन्तर् है वहां उस स् वतंतर् ता म ᱶपक्षकारᲂ का उस िववाद को अवधािरत करने के िलए िकसी ᳞ िक् त को िजनके अंतगर्त कोई संस्था भी है, पर् ािधकृ त करने का अिधकार सिम्मिलत होगा ।
( 7 ) इस भाग के अधीन िकया गया माध्यस्थम् पंचाट, देशी पंचाट समझा जाएगा ।
( 8 ) जहां इस भाग मᱶ— (क) इस तथ्य का िनद ᱷ श िकया गया है िक पक्षकारᲂ म ᱶकरार पाया गया है अथवा यह िक वे करार कर सकते हᱹ ; या
(ख) िकसी अन्य पर् कार से पक्षकारᲂ के िकसी करार का िनदᱷश िकया गया है ,
वहां उस करार के अन्तगर् त उस करार मᱶ िनिदष् ट कोई माध्यस्थम् िनयम भी हᲂगे ।
( 9 ) जहां इस भाग मᱶ, धारा 25 के खंड (क) या धारा 32 की उपधारा ( 2 ) के खंड (क) से िभन् न, िकसी दावे के पर् ित िनद ᱷ श िकया गया है, वहां यह िकसी पर् ितदावे को भी लागू होगा और जहां यह िकसी पर् ितरक्षा के पर् ित िनद ᱷ श करता है, वहां यह उस पर् ितदावे के िकसी पर् ितरक्षा को भी लागू होगा ।
3. िलिखत संसूचनाᲐ की पर् ािप् त — ( 1 ) जब तक िक पक्षकारᲂ ᳇ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, — (क) कोई िलिखत संसूचना पर् ाप् त की गई समझी जाएगी यिद वह पर्े िषती को ᳞ िक् तगत रू प से या उसके कारबार के स् थान, आभ्यािसक िनवास या डाक के पते पर, पिरदᱫ की जाती है ; और
(i) माध्यस्थम् कायर् वािहयᲂ के पर् योजनᲂ के िलए िकसी अपर्ाप् तवय या िवकृतिचᱫ ᳞ िक् त के िलए संरक्षक की िनयुिक् त के िलए ; या (ii) िनम् निलिखत िवषयᲂ मᱶ से िकसी के संबंध मᱶ संरक्षण के िकसी अंतिरम अध्युपाय के िलए, अथार्त् :—
(क) िकसी माल का, जो माध्यस्थम् करार की िवषय-वस्तु है, पिररक्षण, अं तिरम अिभरक्षा या िवकर्य ; (ख) माध्यस्थम् मᱶ िववादगर्स्त रकम सु रिक्षत करने ;
(ग) िकसी संपिᱫ या वस्तु का, जो माध्यस्थम् मᱶ िवषय-वस्तु या िववाद है या िजसके बारे मᱶ कोई पर्श् न उसमᱶ उद्भू त हो सकता है, िनरोध, पिररक्षण या िनरीक्षण और पू वᲃक् त पर् योजनᲂ म ᱶ से िकसी के िलए िकसी पक्षकार के कब्जे मᱶ िकसी भूिम पर या भवन मᱶ िकसी ᳞ िक् त को पर् वेश करने देने के िलए पर् ािधकृ त करने, या कोई ऐसा नमूना लेने के िलए या कोई ऐसा संपर्ेक्षण या पर् योग कराए जाने के िलए जो पूणर् जानकारी या सा᭯य पर् ाप् त करने के पर् योजन के िलए आवश्यक या समीचीन हो, पर् ािधकृ त करने ;
(घ) अंतिरम ᳞ ादे श या िकसी िरसीवर की िनयुिक् त करने ; (ङ) संरक्षण का ऐसा अन्य अं तिरम उपाय करने के िलए जो न् यायालय को न् यायोिचत और सु िवधाजनक पर् तीत हो, आवे दन कर सकेगा,
और न् यायालय को आदे श करने की वही शिक् तयां हᲂगी जो अपने समक्ष िकसी कायर् वाही के पर् योजन के िलए और उसके संबंध मᱶ उसे हᱹ ।
अध्याय 3
10. मध्यस्थᲂ की संख् या — ( 1 ) पक्षकार मध्यस्थᲂ की संख् या अवधािरत करने के िलए स् वतंतर् ह ᱹपरन्तु ऐसी संख्या, कोई सम संख्या नहᱭ होगी ।
( 2 ) उपधारा ( 1 ) मᱶ िनिदष् ट अवधारण करने मᱶ असफल रहने पर माध्यस्थम् अिधकरण एकमातर् मध्यस्थ से िमलकर बनेगा ।
11. मध्यस्थᲂ की िनयु िक् त — ( 1 ) िकसी भी रािष् टर् कता को कोई ᳞ िक् त, जब तक िक पक्षकारᲂ ᳇ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, मध्यस्थ हो सकता है ।
( 2 ) उपधारा ( 6 ) के अधीन रहते हु ए, पक्षकार मध्यस्थ या मध्यस्थᲂ को िनयुक् त करने के िलए िकसी पर् िकर्या पर करार करने के िलए स् वतंतर् ह ᱹ।
( 3 ) उपधारा ( 2 ) मᱶ िनिदष् ट िकसी करार के न होने पर, तीन मध्यस्थᲂ वाले िकसी मध्यस्थ म ᱶ, पर्त् ये क पक्षकार एक मध्यस्थ िनयुक् त करेगा और दो िनयुक् त मध्यस्थ ऐसे तीसरे मध्यस्थ को िनयुक् त करᱶगे, जो पीठासीन मध्यस्थ के रू प म ᱶकायर् करेगा ।
( 4 ) यिद उपधारा ( 3 ) की िनयुिक् त की पर् िकर्या लागू होती है और —
(क) कोई पक्षकार िकसी मध्यस्थ को िनयुक् त करने मᱶ, दूसरे पक्षकार से ऐसा करने के िकसी अनुरोध की पर् ािप् त से तीस िदन के भीतर, असफल रहता है, या (ख) दो िनयुक् त मध्यस्थ अपनी िनयुिक् त की तारीख से तीस िदन के भीतर तीसरे मध्यस्थ पर सहमत होने मᱶ असफल रहते हᱹ,
तो िनयुिक् त, िकसी पक्षकार के अनुरोध पर, मुख्य न् यायमू ित ᳇ारा या उसके ᳇ारा पदािभिहत िकसी ᳞ िक् त या संस्था ᳇ारा की जाएगी ।
( 5 ) उपधारा ( 2 ) मᱶ िनिदष् ट िकसी करार के न होने पर, एकमातर् मध्यस्थ वाले िकसी मध्यस्थ म ᱶ, यिद पक्षकार िकसी मध्यस्थ पर, एक पक्षकार ᳇ारा दू सरे पक्षकार से िकए गए िकसी अनुरोध की पर् ािप् त से तीस िदन के भीतर इस पर् कार सहमत होने मᱶ असफल रहते हᱹ, तो िनयुिक् त, िकसी पक्षकार के अनुरोध पर मुख्य न् यायमू ित या उसके ᳇ारा पदािभिहत िकसी ᳞ िक् त या संस्था ᳇ारा की जाएगी ।
( 6 ) जहां पक्षकारᲂ ᳇ारा करार पाई गई िकसी िनयुिक् त की पर् िकर्या के अधीन, —
(क) कोई पक्षकार उस पर् िकर्या के अधीन अपेिक्षत रू प म ᱶकायर् करने मᱶ असफल रहता है, या (ख) पक्षकार अथवा दो िनयुक् त मध्यस्थ, उस पर् िकर्या के अधीन उनसे अपेिक्षत िकसी करार पर पहुं चने मᱶ असफल रहते हᱹ, या
(ग) कोई व् यिक् त, िजसके अन् तगर्त कोई संस् था है, उस पर् िकर्या के अधीन उसे सᲅपे गए िकसी कृत्य का िनष् पादन करने मᱶ असफल रहता है,
मᱶ िनयुिक् त सुिनिश् चत कराने के अन्य साधनᲂ के िलए उपबंध न िकया गया हो, आवश्यक उपाय करने के िलए अनुरोध कर सकता है ।
( 7 ) उपधारा ( 4 ) या उपधारा ( 5 ) या उपधारा ( 6 ) के अनुसार मुख्य न् यायमू ित या उसके ᳇ारा पदािभिहत ᳞ िक् त या संस्था को सᲅपे गए िकसी िवषय पर कोई िविनश् चय अंितम होगा ।
( 8 ) िकसी मध्यस्थ की िनयु िक् त करने मᱶ मुख्य न् यायमू ित या उसके ᳇ारा पदािभिहत ᳞ िक् त या संस्था, िनम् निलिखत का सम्यक् रू प से ध् यान रखेगी —
(क) पक्षकारᲂ के करार ᳇ारा अपेिक्षत मध्यस्थ की कोई अहर् ता, और (ख) अन्य बात ᱶ , िजनसे िकसी स् वतंतर् और िनष्पक्ष मध्यस्थ की िनयु िक् त सुिनिश् चत िकए जाने की संभावना है ।
( 9 ) िकसी अन्तरराष् टर् ीय वािणिज्यक माध्यस्थम् मᱶ एकमातर् या तीसरे मध्यस्थ की िनयु िक् त की दशा मᱶ, जहां पक्षकार िविभन् न राष् टर् ीयताᲐ के हᱹ वहां भारत का मुख्य न् यायमू ित या उसके ᳇ारा पदािभिहत ᳞ िक् त या संस्था, पक्षकारᲂ की राष् टर् ीयता से िभन् न िकसी राष् टर् ीयता वाला कोई मध्यस्थ िनयुक् त कर सकेगी ।
( 10 ) मुख्य न् यायमू ित, कोई ऐसी स् कीम बना सके गा जो वह उपधारा ( 4 ) या उपधारा ( 5 ) या उपधारा ( 6 ) ᳇ारा उसे सᲅपे गए िवषयᲂ के िनपटारे के िलए समुिचत समझे ।
( 11 ) जहां िविभन् न उच् च न् यायालयᲂ के मुख्य न् यायमू ितयᲂ या उनके पदािभिहतᲂ से उपधारा ( 4 ) या उपधारा ( 5 ) या उपधारा ( 6 ) के अधीन एक से अिधक बार अनुरोध िकया गया है, वहां केवल वही मुख्य न् यायमू ित या उसका पदािभिहत ही, िजससे सुसंगत उपधारा के अधीन पर् थम बार अनुरोध िकया गया है , ऐसे अनुरोध की बाबत िविनश् चय करने के िलए सक्षम होगा ।
( 12 ) (क) जहां उपधारा ( 4 ), उपधारा ( 5 ), उपधारा ( 6 ), उपधारा ( 7 ), उपधारा ( 8 ) और उपधारा ( 10 ) मᱶ िनिदष् ट िवषय िकसी अन्तरराष् टर् ीय वािणिज्यक माध्यस्थम् मᱶ उद्भू त होते हᱹ वहां उन उपधाराᲐ मᱶ “मुख्य न् यायमू ित” के पर् ित िनद ᱷ श का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह “भारत के मुख्य न् यायमू ित” के पर् ित िनद ᱷ श है ।
(ख) जहां उपधारा ( 4 ), उपधारा ( 5 ), उपधारा ( 6 ), उपधारा ( 7 ), उपधारा ( 8 ) और उपधारा ( 10 ) मᱶ िनिदष् ट िवषय िकसी अन्य माध्यस्थम् मᱶ उद्भू त होते हᱹ वहां उन उपधाराᲐ मᱶ “मुख्य न् यायमू ित” के पर् ित िनद ᱷ श का यह अथर् लगाया जाएगा िक वह ऐसे उच् च न् यायालय के मुख्य न् यायमू ित के पर् ित िनद ᱷ श है िजसकी स् थानीय पिरसीमाᲐ के भीतर धारा 2 की उपधारा ( 1 ) के खंड (ङ) मᱶ िनिदष्ट पर् धान िसिवल न् यायालय िस्थत है और, जहां स् वयं उच् च न् यायालय ही उस खं ड मᱶ िनिदष् ट न् यायालय है , वहां उस उच् च न् यायालय के मुख्य न् यायमू ित के पर् ित िनद ᱷ श है ।
12. आक्षे प के िलए आधार — ( 1 ) जहां िकसी ᳞ िक् त से िकसी मध्यस्थ के रू प म ᱶउसकी संभािवत िनयुिक् त के संबंध मᱶ पर्स् ताव िकया जाता है वहां वह िकसी ऐसी पिरिस्थित को िलिखत रू प म ᱶ पर्कट करे गा िजससे उसकी स् वतंतर् ता या िनष्पक्षता के बारे मᱶ उिचत शंकाएं उठने की संभावना हो ।
( 2 ) कोई मध्यस्थ, अपनी िनयु िक् त के समय से और संपूणर् माध्यस्थम् कायर्वािहयᲂ के दौरान, िवलम्ब के िबना पक्षकारᲂ को उपधारा ( 1 ) मᱶ िनिदष् ट िकन्हᱭ पिरिस्थितयᲂ को िलिखत रू प म ᱶतब पर् कट करे गा जब िक उसके ᳇ारा उनके बारे मᱶ पहले ही सूिचत न कर िदया गया हो ।
( 3 ) िकसी मध्यस्थ पर के वल तभी आक्षे प िकया जा सकेगा, यिद — (क) ऐसी पिरिस्थितयां िव᳒मान हᲂ जो उसकी स् वतंतर् ता या िनष्पक्षता के बारे मᱶ उिचत शंकाᲐ को उत्पन् न करती हᲂ, या
(ख) उसके पास पक्षकारᲂ ᳇ारा तय पाई गई अहर् ताएं न हᲂ । ( 4 ) कोई पक्षकार, ऐसे िकसी मध्यस्थ पर, जो उसके ᳇ारा िनयुक् त हो या िजसकी िनयुिक् त मᱶ उसने भाग िलया हो, केवल उन कारणᲂ से िजनसे वह िनयुिक् त िकए जाने के पश् चात् अवगत होता है, आक्षेप कर सके गा ।
13. आक्षे प करने की पर् िकर्या — ( 1 ) उपधारा ( 4 ) के अधीन रहते हु ए पक्षकार, िकसी मध्यस्थ पर आक्षे प करने के िलए िकसी पर् िकर्या पर करार करने के िलए स् वतंतर् ह ᱹ।
( 2 ) उपधारा ( 1 ) मᱶ िनिदष् ट िकसी करार के न होने पर, कोई पक्षकार, जो िकसी मध्यस्थ पर आक्षे प करने का आशय रखता है, माध्यस्थम् अिधकरण के गठन से अवगत होने के पश् चात् या धारा 12 की उपधारा ( 3 ) मᱶ िनिदष् ट िकन्हᱭ पिरिस्थितयᲂ से अवगत होने के पश् चात् पन्दर्ह िदन के भीतर माध्यस्थम् अिधकरण पर आक्षेप करने के कारणᲂ का िलिखत कथन भेजेगा ।
( 3 ) जब तक िक वह मध्यस्थ, िजस पर उपधारा ( 2 ) के अधीन आक्षे प िकया गया है, अपने पद से हट नहᱭ जाता है या अन्य पक्षकार आक्षे प से सहमत नहᱭ हो जाता है, माध्यस्थम् अिधकरण, आक्षेप पर िविनश् चय करेगा ।
( 4 ) माध्यस्थम् अिधकरण उपधारा ( 2 ) या उपधारा ( 3 ) मᱶ िनिदष् ट मामलᲂ मᱶ से िकसी मᱶ भी परवतᱮ अिभवाक् को, यिद वह िवलम्ब को न् यायोिचत समझता है तो, गर् हण कर सकता है ।
( 5 ) माध्यस्थम् अिधकरण, उपधारा ( 2 ) या उपधारा ( 3 ) मᱶ िनिदष् ट िकसी अिभवाक् पर िविनश् चय करेगा और जहां माध्यस्थम् अिधकरण, अिभवाक् को नामंजूर करने का िविनश् चय करता है वहां वह माध्यस्थम् कायर्वािहयᲂ को जारी रखेगा और माध्यस्थम् पंचाट देगा ।
( 6 ) ऐसे िकसी माध्यस्थम् पंचाट से ᳞ िथत कोई पक्षकार ऐसे िकसी माध्यस्थम् पंचाट को अपास्त करने के िलए धारा 34 के अनुसार आवेदन कर सकेगा ।
17. माध्यस्थम् अिधकरण ᳇ारा आिदष् ट अंतिरम उपाय — ( 1 ) जब तक िक पक्षकारᲂ ᳇ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, माध्यस्थम् अिधकरण, िकसी पक्षकार के अनुरोध पर, िकसी पक्षकार को सं रक्षण का कोई ऐसा अं तिरम उपाय करने के िलए जैसा माध्यस्थम् अिधकरण िववाद की िवषय-वस्तु के संबंध मᱶ आवश्यक समझे , आदेश दे सकेगा ।
( 2 ) माध्यस्थम् अिधकरण, िकसी पक्षकार से उपधारा ( 1 ) के अधीन आिदष् ट उपाय के संबंध मᱶ समुिचत सुरक्षा का उपबं ध करने की अपेक्षा कर सके गा ।
अध्याय 5
18. पक्षकारᲂ से समान बतार्व — पक्षकारᲂ से समानता का बतार्व िकया जाएगा और पर्त् ये क पक्षकार को अपना मामला पर्स् तु त करने का पूणर् अवसर िदया जाएगा । 19. पर्िकर्या के िनयमᲂ का अवधारण — ( 1 ) माध्यस्थम् अिधकरण, िसिवल पर् िकर्या सं िहता, 1908 ( 1908 का 5 ) या भारतीय सा᭯य अिधिनयम, 1872 ( 1872 का 1 ) से आब नहᱭ होगा ।
( 2 ) इस भाग के अधीन रहते हु ए, पक्षकार, माध्यस्थम् अिधकरण ᳇ारा अपनी कायर्वािहयᲂ के संचालन मᱶ अपनाई जाने वाली पर् िकर्या पर करार करने के िलए स् वतंतर् ह ᱹ।
( 3 ) उपधारा ( 2 ) मᱶ िनिदष् ट िकसी करार के न होने पर माध्यस्थम् अिधकरण, इस भाग के अधीन रहते हु ए ऐसी रीित से , जो वह समुिचत समझे, कायर्वािहयᲂ का संचालन कर सकेगा ।
( 4 ) उपधारा ( 3 ) के अधीन माध्यस्थम् अिधकरण की शिक् त मᱶ िकसी सा᭯य की गर् ा᳭ता, सु संगता, ताित्वकता और महत्व का अवधारण करने की शिक् त भी सिम्मिलत है ।
20. माध्यस्थम् का स् थान — ( 1 ) पक्षकार, माध्यस्थम् के स् थान के िलए करार करने के िलए स् वतंतर् ह ᱹ। ( 2 ) उपधारा ( 1 ) मᱶ िनिदष् ट िकसी करार के न होने पर माध्यस्थम् के स् थान का अवधारण, मामले की पिरिस्थितयᲂ का ध् यान रखते हु ए, िजनके अन्तगर् त पक्षकार की सु िवधा भी है, माध्यस्थम् अिधकरण ᳇ारा िकया जाएगा ।
( 3 ) उपधारा ( 1 ) या उपधारा ( 2 ) मᱶ िकसी बात के होते हु ए भी, माध्यस्थम् अिधकरण, जब तक िक पक्षकारᲂ ᳇ारा अन्यथा करार नहᱭ िकया गया हो, िकसी ऐसे स् थान पर, जो वह अपने सदस्यᲂ के बीच परामशर् के िलए, सािक्षयᲂ, िवशे षज्ञᲂ या पक्षकारᲂ को सुनने के िलए या दस्तावे जᲂ, माल या अन्य सम्पिᱫ के िनरीक्षण के िलए समुिचत समझता है, बैठक कर सकेगा ।
21. माध्यस्थम् कायर्वािहयᲂ का पर् ारम्भ — जब तक िक पक्षकारᲂ ᳇ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, िकसी िविशष् ट िववाद के संबंध मᱶ माध्यस्थम् कायर्वािहयां उस तारीख को पर् ारम्भ हᲂगी, िजसको उस िववाद को माध्यस्थम् को िनदᱷिशत करने के िलए अनुरोध पर्त् यथᱮ ᳇ारा पर् ाप् त िकया जाता है । 22. भाषा — ( 1 ) पक्षकार माध्यस्थम् कायर्वािहयᲂ मᱶ पर् योग की जाने वाली भाषा या भाषाᲐ पर करार करने के िलएस् वतंतर् ह ᱹ।
( 2 ) उपधारा ( 1 ) मᱶ िनिदष् ट िकसी करार के न होने पर, माध्यस्थम् अिधकरण, माध्यस्थम् कायर्वािहयᲂ मᱶ पर् योग की जाने वाली भाषा या भाषाᲐ का अवधारण करेगा ।
( 3 ) करार या अवधारण, जब तक िक अन्यथा िविनिदष्ट न हो, िकसी पक्षकार ᳇ारा िकए गए िकसी िलिखत कथन, माध्यस्थम् अिधकरण ᳇ारा िकसी सुनवाई और िकसी माध्यस्थम् पंचाट, िविनश् चय या अन्य सं सूचना को लागू होगा ।
( 4 ) माध्यस्थम् अिधकरण यह आदे श कर सकेगा िक िकसी दस्तावे जी सा᭯य के साथ उसका उस भाषा या उन भाषाᲐ मᱶ, जो पक्षकारᲂ ᳇ारा करार की गई ह ᱹया माध्यस्थम् अिधकरण ᳇ारा अवधािरत की गई हᱹ, अनुवाद होगा ।
23. दावा और पर् ितरक्षा के कथन — ( 1 ) पक्षकारᲂ ᳇ारा करार पाई गई या माध्यस्थम् अिधकरण ᳇ारा अवधािरत की गई कालाविध के भीतर, दावेदार, अपने दावे का समथर्न करने वाले तथ्यᲂ, िववा᳒क मु ᲂ और मांगे गए अनुतोष या उपचार का कथन
करेगा और पर्त् यथᱮ, इन िविशिष् टयᲂ के संबंध मᱶ अपनी पर् ितरक्षा का कथन करे गा जब तक िक पक्षकारᲂ ने उन कथनᲂ के अपेिक्षत तत्वᲂ के बारे मᱶ अन्यथा करार न िकया हो ।
( 2 ) पक्षकार अपने कथनᲂ के साथ ऐसे सभी दस्तावे जᲂ को, िजन्ह ᱶ वे सुसंगत समझᱶ, पर्स् तु त कर सकᱶगे या उन दस्तावे जᲂ अथवा अन्य सा᭯य का जो वे पर्स् तु त करᱶगे, कोई संदभर् दे सकᱶगे ।
( 3 ) जब तक िक पक्षकारᲂ ᳇ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, कोई भी पक्षकार, माध्यस्थम् कायर्वािहयᲂ के दौरान अपने दावे या पर् ितरक्षा को सं शोिधत या अनुपूिरत कर सकेगा जब तक िक माध्यस्थम् अिधकरण उसे करने मᱶ िवलंब को ध् यान मᱶ रखते हु ए संशोधन या अनुपूित को अनुज्ञात करना उिचत न समझे ।
24. सुनवाई और िलिखत कायर्वािहयां — ( 1 ) जब तक िक पक्षकारᲂ ᳇ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, माध्यस्थम् अिधकरण, यह िविनश् चय करेगा िक क् या सा᭯य की पर्स् तु ित के िलए मौिखक सुनवाई की जाए या मौिखक बहस की जाए या क् या कायर्वािहयां दस्तावे जᲂ और अन्य सामगर्ी के आधार पर संचािलत की जाएंगी :
परंतु माध्यस्थम् अिधकरण, िकसी पक्षकार ᳇ारा अनु रोध िकए जाने पर कायर्वािहयᲂ के उिचत पर्कर् म पर मौिखक सु नवाई करेगा जब तक िक पक्षकारᲂ ᳇ारा यह करार न िकया गया हो िक कोई मौिखक सु नवाई नहᱭ की जाएगी ।
( 2 ) पक्षकारᲂ को िकसी सुनवाई की या दस्तावे जᲂ, माल या अन्य सं पिᱫ के िनरीक्षण के पर् योजनᲂ के िलए माध्यस्थम् अिधकरण की िकसी बैठक की पयार्प् त अिगर्म सू चना दी जाएगी ।
( 3 ) िकसी एक पक्षकार ᳇ारा माध्यस्थम् अिधकरण को िदए गए सभी कथन, दस्तावे ज या अन्य जानकारी को अथवा िकए गए आवेदनᲂ को दूसरे पक्षकार को सं सूिचत िकया जाएगा और कोई िवशेषज्ञ िरपोटर् या साि᭯यक दस्तावे ज, िजस पर माध्यस्थम् अिधकरण अपना िविनश् चय करने मᱶ िनभर्र रह सकता है, पक्षकारᲂ को सं सूिचत िकया जाएगा ।
25. िकसी पक्षकार का ᳞ ितकर्म — जब तक िक पक्षकारᲂ ᳇ारा अन् यथा करार न िकया गया हो, जहां पयार्प् त हेतुक दिशत िकए िबना,—
(क) दावेदार धारा 23 की उपधारा ( 1 ) के अनुसार दावे का अपना कथन संसूिचत करने मᱶ असफल रहता है, वहां, माध्यस्थम् अिधकरण, कायर्वािहयᲂ को समाप् त कर देगा ; (ख) पर्त् यथᱮ धारा 23 की उपधारा ( 1 ) के अनुसार पर् ितरक्षा का अपना कथन सं सूिचत करने मᱶ असफल रहता है, वहां माध्यस्थम् अिधकरण, उस असफलता को दावेदार ᳇ारा िकए गए अिभकथन को स् वयं मᱶ स् वीकृ ित के रू प म ᱶमाने िबना कायर्वािहयᲂ को चालू रखेगा ; (ग) यिद कोई पक्षकार मौिखक सु नवाई पर उपसंजात होने मᱶ या दस्तावे जी सा᭯य पर्स् तु त करने मᱶ असफल रहता है तो माध्यस्थम् अिधकरण कायर्वािहयᲂ को जारी रख सकेगा और उसके समक्ष उपलब्ध सा᭯य पर माध्यस्थम् पंचाट दे सकेगा ।
26. माध्यस्थम् अिधकरण ᳇ारा िनयुक् त िवशेषज्ञ — ( 1 ) जब तक िक पक्षकारᲂ ᳇ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, माध्यस्थम् अिधकरण—
(क) माध्यस्थम् अिधकरण ᳇ारा अवधािरत िकए जाने वाले िविनिदष् ट िववा᳒कᲂ पर उसे िरपोटर् करने के िलए एक या अिधक िवशेषज्ञ िनयुक् त कर सकेगा ; और
(ख) िकसी पक्षकार से िवशेषज्ञ को कोई सुसंगत जानकारी दे ने या िकसी सुसंगत दस्तावेज, माल या अन्य सं पिᱫ को उसके िनरीक्षण के िलए पर्स् तु त करने या उसकी उस तक पहुं च की ᳞ वस्था करने की अपेक्षा कर सके गा । ( 2 ) जब तक िक पक्षकारᲂ ᳇ारा अन्यथा करार न िकया गया हो यिद कोई पक्षकार ऐ सा अनुरोध करता है या यिद माध्यस्थम् अिधकरण यह आवश्यक समझता है तो िवशेषज्ञ, अपनी िलिखत या मौिखक िरपोटर् के पिरदान के पश् चात् िकसी मौिखक सुनवाई मᱶ भाग ले सकेगा जहां पक्षकारᲂ को, उससे पर्श् न पूछने और िववा᳒क पर्श् नᲂ पर सा᭯य दे ने के िलए िवशेषज्ञ सािक्षयᲂ को पर्स् तु त करने का अवसर पर् ाप् त होगा ।
( 3 ) जब तक िक पक्षकारᲂ ᳇ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, िवशे षज्ञ, िकसी पक्षकार के अनुरोध पर, उस पक्षकार को परीक्षा के िलए िवशेषज्ञ के कब्जे मᱶ के सभी दस्तावे ज, माल या सम्पिᱫ को, उपलब्ध कराएगा िजसे उसको अपनी िरपोटर् तैयार करने के िलए उपलब्ध कराया गया था ।
27. सा᭯य ले ने मᱶ न् यायालय की सहायता — ( 1 ) माध्यस्थम् अिधकरण या माध्यस्थम् अिधकरण के अनुमोदन से कोई पक्षकार, सा᭯य ले ने मᱶ सहायता के िलए न् यायालय को आवेदन कर सके गा ।
( 2 ) आवेदन मᱶ िनम् निलिखत िविनिदष् ट होगा— (क) पक्षकारᲂ और मध्यस्थᲂ के नाम और पते ;
(ख) दावे की साधारण पर् कृ ित और मांगा गया अनुतोष ;
( 3 ) करार पाए गए िनबंधनᲂ पर माध्यस्थम् पंचाट धारा 31 के अनुसार िदया जाएगा और उसमᱶ यह अिभकिथत होगा िक वह माध्यस्थम् पंचाट है ।
( 4 ) करार पाए गए िनबंधनᲂ पर माध्यस्थम् पंचाट की वही पर् ािस्थित होगी और उसका वही पर् भाव होगा, जो िववाद के सार पर िकसी अन्य माध्यस्थम् पंचाट का होता है ।
31. माध्यस्थम् पंचाट का पर्रू प और उसकी िवषय-वस्तु — ( 1 ) माध्यस्थम् पंचाट िलिखत मᱶ िदया जाएगा और माध्यस्थम् अिधकरण के सदस्यᲂ ᳇ारा उस पर हस्ताक्षर िकए जाएं गे ।
( 2 ) उपधारा ( 1 ) के पर् योजनᲂ के िलए, ऐसी माध्यस्थम् कायर् वािहयᲂ मᱶ िजनमᱶ एक से अिधक मध्यस्थ ह , माध्यस्थम्ᱹ अिधकरण के सभी सदस्यᲂ म ᱶ से बहुमत के हस्ताक्षर पयार्प् त हᲂगे यह तब जब िक िकसी लोप िकए गए हस्ताक्षर के िलए कारण अिभकिथत िकए गए हᲂ ।
( 3 ) माध्यस्थम् पंचाट मᱶ वे कारण अिभकिथत हᲂगे िजन पर वह आधािरत हᱹ, जब तक िक—
(क) पक्षकारᲂ ने यह करार न िकया हो िक कोई कारण नहᱭ िदए जाने हᱹ, या (ख) पंचाट, धारा 30 के अधीन करार पाए गए िनबंधनᲂ पर माध्यस्थम् पंचाट है । ( 4 ) माध्यस्थम् पं चाट मᱶ, धारा 20 के अनुसार अवधािरत उसकी तारीख और माध्यस्थम् का स् थान अिभकिथत होगा और पंचाट उस स् थान पर िदया गया समझा जाएगा ।
( 5 ) माध्यस्थम् पंचाट िदए जाने के पश् चात्, पर्त् ये क पक्षकार को उसकी एक हस्ताक्षिरत पर् ित दी जाएगी ।
( 6 ) माध्यस्थम् अिधकरण, माध्यस्थम् कायर्वािहयᲂ के दौरान िकसी भी समय, ऐसे िकसी िवषय पर िजस पर िक वह अंितम माध्यस्थम् पंचाट दे सकता है, अंतिरम पंचाट दे सकेगा ।
( 7 ) (क) जब तक िक पक्षकारᲂ ᳇ारा अन्यथा करार न पाया जाए, जहां और जहां तक िक कोई माध्यस्थम् पंचाट धन के संदाय के िलए है, माध्यस्थम् अिधकरण, उस रािश मᱶ, िजसके िलए पंचाट िदया गया है, संपूणर् धन पर या उसके िकसी भाग पर, वह तारीख िजसको पंचाट िदया गया है, के बीच की संपूणर् अविध या उसके िकसी भाग के िलए ऐसी दर से जो वह ठीक समझे, ब् याज सिम्मिलत कर सकेगा ।
(ख) उस रािश पर, िजसका संदाय िकए जाने का माध्यस्थम् पंचाट ᳇ारा िनदेश िकया गया है, जब तक िक पंचाट मᱶ अन्यथा िनदेश न िकया गया हो, पंचाट की तारीख से संदाय िकए जाने की तारीख तक, अठारह पर् ितशत वािषक की दर से ब् याज सं देय होगा ।
( 8 ) जब तक िक पक्षकारᲂ ᳇ारा अन्यथा करार न पाया गया हो — (क) माध्यस्थम् का खचर् माध्यस्थम् अिधकरण ᳇ारा िनयत िकया जाएगा ;
(ख) माध्यस्थम् अिधकरण िनम् निलिखत िविनिदष् ट करेगा,— (i) खचᱷ का हकदार पक्षकार, (ii) वह पक्षकार, जो खचर् का संदाय करेगा,
(iii) खचर् की रकम या उक् त रकम अवधािरत करने की पित, और (iv) वह रीित, िजससे खचᱷ का संदाय िकया जाएगा ।
स्पष् टीकरण — खंड (क) के पर् योजन के िलए, “खचर्” से िनम् निलिखत से संबंिधत उिचत खचर् अिभपर्े त हᱹ— (i) मध्यस्थᲂ और सािक्षयᲂ की फीस और ᳞ य, (ii) िविधक फीस और ᳞ य,
(iii) माध्यस्थम् का पयर्वेक्षण करने वाली संस्था की पर् शासन-फीस, और (iv) माध्यस्थम् कायर्वािहयᲂ और माध्यस्थम् पंचाट के संबंध मᱶ उपगत कोई अन्य ᳞ य ।
32. कायर्वािहयᲂ का समापन — ( 1 ) माध्यस्थम् कायर् वािहयᲂ का समापन, अंितम माध्यस्थम् पं चाट ᳇ारा या उपधारा ( 2 ) के अधीन माध्यस्थम् अिधकरण के आदेश ᳇ारा होगा ।
( 2 ) माध्यस्थम् अिधकरण, माध्यस्थम् कायर्वािहयᲂ के समापन का वहां आदेश देगा, जहां—
(क) दावेदार अपने दावे को, जब तक िक पर्त् यथᱮ आदे श पर आक्षेप नहᱭ करता है और िववाद का अंितम पिरिनधार्रण अिभपर्ाप् त करने मᱶ, माध्यस्थम् अिधकरण उसके िविधसम्मत िहतᲂ को मान्यता नहᱭ दे ता है, पर्त् याहृत कर लेता है ;
(ख) पक्षकार कायर्वािहयᲂ के समापन के िलए सहमत हो जाते हᱹ ; या (ग) माध्यस्थम् अिधकरण का यह िनष्कषर् है िक कायर्वािहयᲂ का जारी रखना, अन्य िकसी कारण से अनावश्यक या असंभव हो गया है ।
( 3 ) धारा 33 और धारा 34 की उपधारा ( 4 ) के अधीन रहते हु ए, माध्यस्थम् अिधकरण की समाज्ञा का, माध्यस्थम् कायर्वािहयᲂ के समापन के साथ, अंत हो जाएगा ।
33. पंचाट का सुधार और िनवर्चन, अितिरक् त पंचाट — ( 1 ) जब तक िक पक्षकार अन्य समयािविध के िलए सहमत न हु ए हᲂ, माध्यस्थम् पंचाट की पर् ािप् त से तीस िदन के भीतर,—
(क) कोई पक्षकार, दू सरे पक्षकार को सू चना देकर, माध्यस्थम् पंचाट मᱶ हु ई िकसी संगणना की गलती, िकसी िलिपकीय या टंकण संबंधी या उसी पर् कृ ित की िकसी अन्य गलती का सु धार करने के िलए माध्यस्थम् अिधकरण से अनुरोध कर सकेगा, और
(ख) यिद पक्षकार इसके िलए सहमत हᲂ तो कोई पक्षकार, दू सरे पक्षकार को सू चना देकर, पंचाट की िकसी िविनिदष् ट बात या भाग का िनवर्चन करने के िलए, माध्यस्थम् अिधकरण से अनुरोध कर सकेगा । ( 2 ) यिद माध्यस्थम् अिधकरण, उपधारा ( 1 ) के अधीन िकए गए अनुरोध को न् यायसं गत समझता है तो वह, अनुरोध की पर् ािप् त से तीस िदन के भीतर सुधार करेगा या िनवर्चन करेगा और ऐसा िनवर्चन माध्यस्थम् पंचाट का भाग होगा ।
( 3 ) माध्यस्थम् अिधकरण, स् वपर्े रणा पर, उपधारा ( 1 ) के खंड (क) मᱶ िनिदष् ट पर् कार की िकसी गलती को, माध्यस्थम् पंचाट की तारीख से तीस िदन के भीतर सुधार सकेगा ।
( 4 ) जब तक िक पक्षकारᲂ ने अन्यथा करार न िकया हो, एक पक्षकार, दू सरे पक्षकार को सू चना देकर, माध्यस्थम् पंचाट की पर् ािप् त से तीस िदन के भीतर माध्यस्थम् कायर्वािहयᲂ मᱶ पर्स् तु त िकए गए उन दावᲂ की बाबत िजन पर माध्यस्थम् पंचाट मᱶ लोप हो गया है, एक अितिरक् त माध्यस्थम् पंचाट देने के िलए माध्यस्थम् अिधकरण से अनुरोध कर सकेगा ।
( 5 ) यिद माध्यस्थम् अिधकरण, उपधारा ( 4 ) के अधीन िकए गए िकसी अनुरोध को न् यायसं गत समझता है, तो वह ऐसे अनुरोध की पर् ािप् त से साठ िदन के भीतर, अितिरक् त माध्यस्थम् पंचाट देगा ।
( 6 ) माध्यस्थम् अिधकरण, यिद आवश्यक हो तो, उस समयाविध को बढ़ा सके गा िजसके भीतर वह उपधारा ( 2 ) या उपधारा ( 5 ) के अधीन सुधार करेगा, िनवर्चन करेगा या अितिरक् त पंचाट देगा ।
( 7 ) धारा 31 , इस धारा के अधीन िकए गए माध्यस्थम् पंचाट के सुधार या िनवर्चन या अितिरक् त माध्यस्थम् पंचाट को, लागू होगी ।
अध्याय 7
(i) कोई पक्षकार िकसी असमथर् ता से गर्स् त था, या (ii) माध्यस्थम् करार उस िविध के , िजसके अधीन पक्षकारᲂ ने उसे िकया है या इस बारे मᱶ कोई संकेत न होने पर, तत्समय पर् वृ ᱫ िकसी िविध के अधीन िविधमान्य नहᱭ है ; या (iii) आवेदन करने वाले पक्षकार को, मध्यस्थ की िनयु िक् त की या माध्यस्थम् कायर्वािहयᲂ की उिचत सूचना नहᱭ दी गई थी, या वह अपना मामला पर्स् तु त करने मᱶ अन्यथा असमथर् था ; या
(iv) माध्यस्थम् पं चाट ऐसे िववाद से संबंिधत है जो अनुध्यात नहᱭ िकया गया है या माध्यस्थम् के िलए िनवेदन करने के िलए रख गए िनबंधनᲂ के भीतर नहᱭ आता है या उसमᱶ ऐसी बातᲂ के बारे मᱶ िविनश् चय है जो माध्यस्थम् के िलए िनवेिदत िवषयक्षेतर् से बाहर है :
परन्तु यिद, माध्यस्थम् के िलए िनवेिदत िकए गए िवषयᲂ पर िविनश्चयᲂ को उन िवषयᲂ के बारे मᱶ िकए गए िविनश् चयᲂ से पृथक् िकया जा सकता है, िजन्ह ᱶ िनवेिदत नहᱭ िकया गया है, तो माध्यस्थम् पंचाट के केवल उस भाग को, िजसमᱶ माध्यस्थम् के िलए िनवेिदत न िकए गए िवषयᲂ पर िविनश् चय है, अपास्त िकया जा सके गा ; या
( 2 ) उपधारा ( 1 ) मᱶ िनिदष् ट िनक्षे प, पक्षकारᲂ ᳇ारा बराबर िहस्सᲂ म ᱶसंदेय होगा : परंतु जहां िनक्षे प के अपने िहस्से की रकम का संदाय करने मᱶ कोई पक्षकार असफल रहता है , वहां दूसरा पक्षकार उक् त िहस्से का संदाय कर सकता है :
परंतु यह और िक जहां दूसरा पक्षकार भी दावे या पर् ितदावे की बाबत, पूवᲃक् त िहस्से का संदाय नहᱭ करता है वहां माध्यस्थम् अिधकरण, यथािस्थित, ऐसे दावे या पर् ितदावे की बाबत, माध्यस्थम् कायर्वािहयᲂ को िनलंिबत या समाप् त कर सकेगा ।
( 3 ) माध्यस्थम् कायर् वािहयᲂ के समापन पर माध्यस्थम् अिधकरण पर् ाप् त िनक्षे पᲂ का पक्षकारᲂ को िहसाब दे गा और िकसी ᳞ य न िकए गए अितशेष को, यथािस्थित, पक्षकार या पक्षकारᲂ को वापस करे गा ।
39. खचर् की बाबत माध्यस्थम् पं चाट और िनक्षे प पर धारणािधकार — ( 1 ) उपधारा ( 2 ) के उपबंधᲂ और माध्यस्थम् करार मᱶ िकसी पर् ितकू ल उपबंध के अधीन रहते हु ए, माध्यस्थम् अिधकरण का, माध्यस्थम् के िकसी असंदᱫ खचर् के िलए माध्यस्थम् पंचाट पर धारणािधकार होगा ।
( 2 ) यिद िकसी मामले मᱶ, माध्यस्थम् अिधकरण, उसके ᳇ारा मांगे गए खचर् के संदाय पर के िसवाय अपना पंचाट देने से इंकार करता है तो, न् यायालय, इस िनिमᱫ िकसी आवे दन पर यह आदेश दे सकेगा िक, मांगा गया खचर् आवेदक ᳇ारा न् यायालय को सं दाय करने पर, माध्यस्थम् अिधकरण आवेदक को माध्यस्थम् पंचाट देगा और ऐसी जांच के पश् चात्, जो वह ठीक समझे, यिद कोई हो, यह और आदेश देगा िक न् यायालय म ᱶ इस पर् कार सं दᱫ रकम मᱶ से ऐसी रािश, जो न् यायालय ठीक समझे , खचर् के रू प म ᱶमाध्यस्थम् अिधकरण को संदᱫ की जाएगी तथा धन का कोई अितशेष, यिद कोई है, आवेदक को वापस िकया जाएगा ।
( 3 ) जब तक िक मांगी गई फीस उसके और माध्यस्थम् अिधकरण के बीच िलिखत करार ᳇ारा िनयत नहᱭ कर दी जाती है उपधारा ( 2 ) के अधीन आवेदन, िकसी पक्षकार ᳇ारा िकया जा सके गा तथा माध्यस्थम् अिधकरण, ऐसे िकसी आवेदन पर उपसंजात होने और सुने जाने के िलए हकदार होगा ।
( 4 ) जहां ऐसे खचर् की बाबत कोई पर्श् न उठता है और माध्यस्थम् पंचाट मᱶ उनसे संबंिधत पयार्प् त उपबंध अंतिवष् ट नहᱭ है वहां न् यायालय, माध्यस्थम् के खचर् की बाबत ऐसा आदेश दे सकेगा, जो वह ठीक समझे ।
40. माध्यस्थम् करार का उसके पक्षकार की मृत् यु के कारण पर् भावोन्मुक् त होना — ( 1 ) माध्यस्थम् करार उसके िकसी पक्षकार की मृत्यु के कारण, न तो मृतक के और न िकसी अन्य पक्षकार के संबंध मᱶ पर् भावोन्मुक् त होगा, िकन्तु ऐसी दशा मᱶ वह मृतक के िविधक पर् ितिनिध के ᳇ारा या उसके िवरु पर् वतर् नीय होगा ।
( 2 ) िकसी मध्यस्थ का आदे श िकसी ऐसे पक्षकार की मृत् यु के कारण समाप् त नहᱭ हो जाएगा, िजसके ᳇ारा वह िनयुक् त िकया गया था ।
( 3 ) इस धारा की कोई भी बात िकसी ऐसी िविध के पर् वतर् न पर पर् भाव नहᱭ डाले गी, िजसके आधार पर िकसी कारर्वाई का कोई अिधकार िकसी ᳞ िक् त की मृत्यु के कारण िनवार्िपत हो जाता है ।
41. िदवाले की दशा मᱶ उपबंध — ( 1 ) जहां िकसी संिवदा मᱶ, िजसका कोई पक्षकार िदवािलया हो, िकसी िनबं धन ᳇ारा यह उपबंिधत हो िक उससे या उसके संबंध मᱶ पैदा होने वाला कोई िववाद माध्यस्थम् के िलए पर्स् तु त िकया जाएगा वहां, यिद िरसीवर संिवदा अंगीकृत कर ले तो, उक् त िनबंधन जहां तक वह ऐसे िकसी िववाद से संबंिधत हो, िरसीवर के ᳇ारा या उसके िवरुपर् वतर् नीय होगा ।
( 2 ) जहां िक कोई ᳞ िक् त, जो िदवािलया न् यायिनणᱮत िकया जा चु का हो, िदवाले की कायर्वाही के पर् ारम्भ के पूवर् िकसी माध् यस् थम् करार का पक्षकार हो गया हो और िकसी ऐसे िवषय का, िजसे करार लागू हो अवधािरत िकया जाना िदवाले की कायर्वाही के संबंध मᱶ या पर् योजनᲂ के िलए अपेिक्षत ह ᱹवहां, यिद मामला ऐसा हो, िजसे उपधारा ( 1 ) लागू नहᱭ होती है तो कोई अन्य पक्षकार या िरसीवर, िदवाले की कायर्वाही मᱶ अिधकािरता रखने वाले न् याियक पर् ािधकारी से यह िनदेश देने वाले आदेश के िलए आवेदन कर सकेगा िक पर्श् नगत मामला माध्यस्थम् करार के अनुसार माध्यस्थम् के िलए पर्स् तु त िकया जाएगा और यिद न् याियक पर् ािधकारी की यह राय हो िक मामले की सब पिरिस्थितयᲂ को ध् यान म ᱶरखते हु ए मामला माध्यस्थम् ᳇ारा अवधािरत िकया जाना चािहए, तो वह तद्नु सार आदेश दे सकेगा ।
( 3 ) इस धारा मᱶ “िरसीवर” पद के अन्तगर् त शासकीय समनुदेिशती आता है ।
माध्यस्थम् करार की बाबत इस भाग के अधीन कोई आवेदन िकसी न् यायालय म ᱶ िकया गया है तो वहां ऐसी माध्यस्थम् कायर्वािहयᲂ तथा उक् त करार से उद्भू त होने वाले सभी पश् चात्वतᱮ आवे दनᲂ पर उसी न् यायालय की अिधकािरता होगी और माध्यस्थम् कायर्वािहयां उसी न् यायालय म ᱶ की जाएंगी और अन्य िकसी न् यायालय म ᱶनहᱭ की जाएंगी ।
43. पिरसीमाएं — ( 1 ) पिरसीमा अिधिनयम, 1963 ( 1963 का 36 ) माध्यस्थमᲂ को वै से ही लागू होगा जैसे वह न् यायालय म ᱶ की कायर्वािहयᲂ को लागू होता है ।
( 2 ) इस धारा और पिरसीमा अिधिनयम, 1963 ( 1963 का 36 ) के पर् योजनᲂ के िलए, कोई माध्यस्थम् धारा 21 मᱶ िनिदष् ट तारीख को पर् ारम्भ हु आ समझा जाएगा ।
( 3 ) जहां भावी िववादᲂ को माध्यस्थम् के िलए िनवेिदत करने के िकसी माध्यस्थम् करार मᱶ यह उपबंध िकया गया है िक जब तक िक करार ᳇ारा िनयत िकए गए समय के भीतर माध्यस्थम् कायर्वाही पर् ारम्भ करने के िलए कदम न उठाया जाए, कोई ऐसा दावा, िजसको करार लागू होता है, विजत होगा और कोई ऐसा िववाद पैदा होता है, िजसको यह करार लागू होता है, वहां न् यायालय, यिद उसकी राय है िक मामले की पिरिस्थितयᲂ म ᱶ अन्यथा असम्यक् किठनाई होगी और इस बात के होते हु ए भी िक इस पर् कार िनयत िकया गया समय समाप् त हो गया है, ऐसे िनबंधनᲂ पर, यिद कोई हो, जो मामले मᱶ न् याय के िलए अपेिक्षत हो, समय को इतनी कालाविध के िलए िवस्तािरत कर सके गा िजतनी वह उिचत समझे ।
( 4 ) जहां न् यायालय आदे श दे िक माध्यस्थम् पंचाट अपास्त कर िदया जाए, वहां इस पर् कार िनवे िदत िकए गए िववाद के बारे मᱶ कायर्वाही के (िजसके अन्तगर् त माध्यस्थम् भी है) पर् ारम्भ के िलए पिरसीमा अिधिनयम, 1963 ( 1963 का 36 ) ᳇ारा िविहत समय की संगणना करने मᱶ माध्यस्थम् के पर् ारम्भ और न् यायालय के आदेश की तारीख के बीच की कालाविध अपविजत कर दी जाएगी ।
भाग 2
अिभपर्े त है जो ᳞ िक् तयᲂ के बीच उन िविधक संबंधᲂ से, चाहे वे संिवदात्मक हᲂ या न हᲂ, िजन्ह ᱶभारत मᱶ पर् वृ ᱫ िविध के अधीन वािणिज्यक समझा गया है , उत्पन् न होने वाले मतभेदᲂ के बारे मᱶ है ; और जो 11 अक् तूबर, 1960 को या उसके पश् चात्—
(क) ऐसे माध्यस्थम् के, िजसको पहली अनुसूची मᱶ िदया गया अिभसमय लागू होता है, िकसी िलिखत करार के अनुसरण मᱶ िकया गया है ; और (ख) ऐसे राज्यक्षेतर् ᲂ म ᱶसे िकसी मᱶ िकया गया है िजन्ह ᱶ केन्दर्ीय सरकार, यह सामाधान हो जाने पर िक ᳞ ितकारी उपबंध िकए गए हᱹ राजपतर् म ᱶअिधसूचना ᳇ारा, ऐसा राज्यक्षेतर् घोिषत करे , िजनको उक् त अिभसमय लागू होता है ।
45. पक्षकारᲂ को माध्यस्थम् के िलए िनिदष् ट करने की न् याियक पर् ािधकारी की शिक् त — भाग 1 मᱶ, या िसिवल पर् िकर्या सं िहता, 1908 ( 1908 का 5 ) मᱶ िकसी बात के होते हु ए भी, जबिक िकसी ऐसे िवषय के बारे मᱶ िजसके संबंध मᱶ धारा 44 मᱶ िनिदष् ट पक्षकारᲂ ने कोई करार िकया है िकसी न् याियक पर् ािधकारी के हाथ मᱶ मामला चला गया हो, तब वह न् यायालय पक्षकारᲂ म ᱶसे िकसी भी पक्षकार या उसकी माफर्त या उससे ᳞ुत् पन् न अिधकार के अधीन दावा करने वाले िकसी ᳞ िक् त के िनवेदन पर पक्षकारᲂ को माध्यस्थम् के िलए उस दशा मᱶ ही िनदᱷिशत करेगा जब िक उसका यह िनष्कषर् होता है िक उक् त करार अकृत और शून्य है , अपर्वतर् नशील है या पालन िकए जाने के योग्य नहᱭ है । 46. िवदेशी पंचाट कब आबकर हᲂगे — िकसी िवदेशी पंचाट को, जो इस अध्याय के अधीन पर् वतर् नीय हो, उन ᳞ िक् तयᲂ पर िजनके बीच यह िकया गया था, सभी पर् योजनᲂ के िलए आबकर माना जाएगा और तद्नु सार उन ᳞ िक् तयᲂ मᱶ से कोई भी ᳞ िक् त, पर् ितरक्षा के रू प म ᱶ, मुजराई के तौर पर या अन्यथा भारत म ᱶ िकन्हᱭ िविधक कायर् वािहयᲂ मᱶ उस पर िनभर्र कर सकेगा और इस अध्याय मᱶ िकसी िवदेशी पंचाट को पर् वृ ᱫ करने के संबंध मᱶ िकन्हᱭ िनद ᱷ शᲂ का यह अथर् लगाया जाएगा िक उसके अन्तगर् त पंचाट पर िनभर्र करने के पर् ितिनद ᱷ श भी है । 47. सा᭯य — ( 1 ) वह पक्षकार जो िकसी िवदे शी पंचाट के पर् वतर् न के िलए आवेदन कर रहा है, आवेदन के समय न् यायालय के समक्ष, —
(क) मूल पंचाट या उसकी पर् ित, जो उस रीित से सम् यक्त: अिधपर्मािणत होगी, जो उस दे श की, िजसमᱶ उसे िकया गया था, िविध ᳇ारा अपेिक्षत है ; (ख) माध्यस्थम् के िलए िकया गया मूल करार या उसकी सम्यक्त: पर् मािणत पर् ित ; और
(ग) ऐसा सा᭯य, जो यह सािबत करने के िलए आवश्यक हो िक पंचाट िवदे शी पंचाट है,
51. ᳞ावृ िᱫ — इस अध्याय की कोई बात उन अिधकारᲂ पर पर् ितकू ल पर् भाव नही डाले गी जो, यिद यह अध्याय अिधिनयिमत न िकया गया होता, तो भारत मᱶ िकसी पंचाट को पर् वितत कराने या भारत मᱶ ऐसे िकसी पंचाट का लाभ उठाने के संबंध मᱶ िकसी ᳞ िक् त को पर् ाप् त होते । 52. अध्याय 2 का लागू न होना — इस भाग का अध्याय 2 ऐसे िवदेशी पंचाटᲂ के संबंध मᱶ लागू नहᱭ होगा, िजनको यह अध्याय लागू होता है ।
अध्याय 2
53. िनवर्चन — इस अध्याय म ᱶ , “िवदेशी पंचाट” से ऐसा माध्यस्थम् पंचाट अिभपर्े त है जो उन िवषयᲂ से संबंिधत मतभेदᲂ पर, िजन्हᱶ भारत मᱶ पर् वृ ᱫ िकसी िविध के अधीन वािणिज्यक समझा जाता है , 28 जुलाई, 1924 के पश् चात्—
(क) ऐसे माध्यस्थम् करार के अनुसरण मᱶ िदया गया है िजसे दूसरी अनुसूची मᱶ उपविणत पर् ोटोकोल लागू होता है ; तथा
(ख) ऐसे ᳞ िक् तयᲂ के बीच िदया गया है िजनमᱶ से एक ऐसी शिक् तयᲂ मᱶ से िकसी एक की अिधकािरता के अधीन है िजनकी बाबत भारत सरकार अपना यह समाधान हो जाने पर िक ᳞ ितकारी उपबं ध कर िदए गए हᱹ, राजपतर् म ᱶअिधसूचना ᳇ारा, यह घोिषत करे िक वे उस अिभसमय के पक्षकार ह ᱹ, जो तीसरी अनुसूची मᱶ उपविणत हᱹ और िजनमᱶ से दूसरा पूवᲃक् त शिक् तयᲂ मᱶ से िकसी अन्य की अिधकािरता के अधीन है ; तथा (ग) ऐसे राज्यक्षेतर् ᲂ म ᱶसे एक मᱶ िदया गया है िजन्ह ᱶ भारत सरकार अपना यह समाधान हो जाने पर िक ᳞ ितकारी उपबंध कर िदए गए हᱹ, वैसी ही अिधसूचना ᳇ारा, ऐसे राज्यक्षेतर् घोिषत करे िजनको उक् त अिभसमय लागू है, और यिद पंचाट की िविधमान्यता को चु नौती देने के पर् योजन के िलए कोई कायर्वािहयां उस देश मᱶ लंिबत हᱹ िजसमᱶ वह िदया गया था तो पंचाट के बारे मᱶ इस अध्याय के पर् योजनᲂ के िलए यह नहᱭ समझा जाएगा िक वह अंितम है ।
54. न्याियक पर् ािधकारी की पक्षकारᲂ को माध्यस्थम् के िलए िनिदष् ट करने की शिक् त — भाग 1 मᱶ या िसिवल पर् िकर्या सं िहता, 1908 ( 1908 का 5 ) मᱶ िकसी बात के होते हु ए भी, कोई न् याियक पर् ािधकारी, ऐसे ᳞ िक् तयᲂ के बीच की गई िकसी संिवदा के संबंध मᱶ िववाद को हाथ मᱶ लेने के पश् चात् िजनको धारा 53 लागू होती है और िजसके अंतगर्त कोई ऐसा माध्यस्थम् करार भी है िजसमᱶ चाहे वतर्मान या भावी िववादᲂ को िनिदष् ट िकया गया है और जो उस धारा के अधीन िविधमान्य हो और िजसे कायार्िन्वत िकया जा सके , उन पक्षकारᲂ म ᱶसे िकसी एक के या उसके ᳇ारा या उसके अधीन दावा करने वाले िकसी ᳞ िक् त के आवेदन पर मध्यस्थᲂ के िविनश् चय के िलए पक्षकारᲂ को िनिदष् ट करेगा और ऐसे िनदᱷश से न् याियक पर् ािधकारी की सक्षमता पर तब कोई पर् ितकू ल पर् भाव नहᱭ पड़े गा, यिद करार पर या माध्यस्थम् मᱶ कोई कायर्वाही नहᱭ की जा सकती है या वह अपर्वतर् नीय हो जाता है । 55. िवदेशी पंचाट कब आबकर हᲂगे — कोई िवदेशी पंचाट, जो इस अध्याय के अधीन पर् वतर् नीय होगा उन ᳞ िक् तयᲂ पर, िजनके बीच उसे िकया गया है, सभी पर् योजनᲂ के िलए आबकर समझा जाएगा और तद्नु सार उस ᳞ िक् तयᲂ मᱶ से िकसी ᳞ िक् त ᳇ारा भारत मᱶ िकन्हᱭ िविधक कायर् वािहयᲂ मᱶ पर् ितरक्षा मु जराई के रू प म ᱶया अन्यथा उस पर िनभर् र िकया जा सकेगा और इस अध्याय म ᱶ िवदेशी पंचाट के पर् वतर् न के पर् ित िकए गए िकन्हᱭ िनद ᱷशᲂ का अथार्न्वयन ऐसे िकया जाएगा मानो उसमᱶ पंचाट पर िनभर्र करने के पर् ित िनदᱷश सिम्मिलत है । 56. सा᭯य — ( 1 ) िकसी िवदेशी पंचाट को पर् वितत कराने के िलए आवेदन करने वाला पक्षकार, आवे दन करते समय न् यायालय के समक्ष िनम् निलिखत पेश करेगा—
(क) मूल पंचाट या िजस देश मᱶ वह िदया गया था, उस देश की िविध ᳇ारा अपेिक्षत रीित से सम्यक् रू प से अिधपर्मािणत उसकी पर् ित ; तथा (ख) यह सािबत करने के िलए सा᭯य िक पं चाट अंितम हो गया है, तथा (ग) ऐसा सा᭯य जो यह सािबत करने के िलए आवश्यक हो िक धारा 57 की उपधारा ( 1 ) के खंड (क) और खंड (ग) मᱶ विणत शतᲄ की पूित हो जाती है । ( 2 ) जहां िक उपधारा ( 1 ) के अधीन पेश करने के िलए अपेिक्षत दस्तावे ज िवदेशी भाषा मᱶ है वहां पंचाट का पर् वतर्न चाहने वाला पक्षकार अंगर्े जी भाषा म ᱶ उसका ऐसा अनुवाद पेश करेगा जो उस देश के राजनियक या कᲅसलीय अिभकतार् ने, िजस देश का वह पक्षकार है , यह पर् मािणत िकया है िक वह सही अनुवाद है या िजसकी बाबत ऐसी अन्य रीित से यह पर् मािणत िकया गया है िक वह सही अनुवाद है जो भारत मᱶ पर् वृ ᱫ िविध के अनुसार पयार्प् त हो ।
स्पष् टीकरण — इस धारा मᱶ और इस अध्याय की िनम् निलिखत सभी धाराᲐ मᱶ, “न्यायालय” से िकसी िजले मᱶ आरंिभक अिधकािरता वाला पर् धान िसिवल न् यायालय अिभपर्े त है और इसके अंतगर्त अपनी मामूली आरंिभक िसिवल अिधकािरता का पर् योग
करने वाला ऐसा उच् च न् यायालय भी है जो पंचाट की िवषय-वस्तु होने वाले पर्श् नᲂ का, यिद वे वाद की िवषय-वस्तु होते तो िविनश् चय करने की अिधकािरता रखता, िकन्तु ऐसे पर् धान िसिवल न् यायालय से िनम् न शर्े णी का कोई िसिवल न् यायालय या कोई लघु वाद न् यायालय इसके अन्तगर् त नहᱭ आता है ।
57. िवदेशी पंचाट के पर् वतर् न के िलए शतᱸ — ( 1 ) इस वास्ते िक िवदेशी पंचाट इस अध्याय के अधीन पर् वतर् नीय हो यह बात आवश्यक होगी िक —
(क) पंचाट उस माध्यस्थम् के िनवेदन के अनुसरण मᱶ िकया गया है जो उस िविध के अधीन िविधमान्य हो, जो उसे लागू है ; (ख) पंचाट की िवषयवस्तु ऐसी है िजसका भारत की िविध के अधीन माध्यस्थम् ᳇ारा िनपटारा िकया जा सकता हो ; (ग) पंचाट उस माध्यस्थम् अिधकरण ᳇ारा िकया गया हो िजसके बारे मᱶ माध्यस्थम् के िनवेदन मᱶ उपबंध िकया गया हो या िजसका गठन पक्षकारᲂ ᳇ारा करार पाई गई रीित से हु आ है और उस िविध के अनुसार िकया गया हो जो माध्यस्थम् पर् िकर्या के संबंध मᱶ लागू हो ; (घ) पंचाट उस देश मᱶ, िजसमᱶ उसे िदया गया है, इस अथर् मᱶ अंितम हो गया हो िक उस पर इस रू प म ᱶिवचार नहᱭ िकया जा सके यिद उसका िवरोध करने या उसके िवरु अपील करने की स् वतंतर् ता है या यह सािबत कर िदया जाता है िक पंचाट की िविधमान्यता को चु नौती देने के पर् योजन के िलए कोई कायर्वािहयां लंिबत हᱹ ;
(ङ) पंचाट का पर् वतर् न, भारत की लोक नीित या िविध के पर् ितकू ल नहᱭ है । स्पष् टीकरण — खंड (ङ) की ᳞ ापकता पर पर् ितकू ल पर् भाव डाले िबना िकसी शंका को दूर करने के िलए यह घोिषत िकया जाता है िक कोई पंचाट भारत की लोक नीित के िवरु है यिद पंचाट का िदया जाना कपट या भर्ष् टाचार ᳇ारा उत्पर्े िरत या पर् भािवत िकया गया था ।
( 2 ) यिद उपधारा ( 1 ) मᱶ अिधकिथत शतᱸ भी पूरी कर दी जाती हᱹ तो भी पंचाट के पर् वतर् न से इंकार िकया जा सकता है यिद न् यायालय का यह समाधान हो जाता है िक—
(क) पंचाट िजस देश मᱶ िदया गया था, वहां उसे बाितल िकया जा चुका है, या (ख) िजस पक्षकार के िवरु उस पं चाट को पर् वितत कराने का पर् यास है , उसे माध्यस्थम् कायर्वािहयᲂ की सूचना इतने समय पूवर् नहᱭ दी गई थी िक वह अपना पक्षकथन पर्स् तु त कर सकता अथवा िकसी िविधक असमथर्ता से गर्स् त होने से उसका पर् ितिनिधत्व उिचत पर् कार से नहᱭ हु आ था, या
(ग) पंचाट ऐसे मतभेदᲂ से संबंिधत नहᱭ है जो माध्यस्थम् के िलए िनवेिदत िनबंधनᲂ ᳇ारा अनुध्यात थे या उसके अन्तगर् त आते थे या उसमᱶ ऐसी बातᲂ के बारे मᱶ िविनश् चय है जो माध्यस्थम् के िलए िनवेिदत िवषय-क्षेतर् के बाहर है : परन्तु यिद उस पंचाट मᱶ माध्यस्थम् अिधकरण को िनवेिदत सभी मतभेदᲂ का समावेश नहᱭ िकया गया है तो न् यायालय, यिद उिचत समझता है तो वह या तो उसके पर् वतर् न को स् थिगत कर सके गा या, ऐसी पर् ितभू ित के िदए जाने की शतर् पर जैसा िक न् यायालय िनिश् चत करे, उसका पर् वतर् न िकए जाने की मंजूरी दे सकेगा ।
( 3 ) यिद वह पक्षकार िजसके िवरु पं चाट िकया गया है, यह सािबत कर देता है िक माध्यस्थम् पर् िकर्या को शािसत करने वाली िविध के अधीन, उपधारा ( 1 ) के खंड (क) और (ग) तथा उपधारा ( 2 ) के खंड (ख) और (ग) मᱶ िनिदष् ट आधारᲂ से िभन् न ऐसा कोई आधार है, िजससे वह उस पंचाट की िविधमान्यता िववादास्पद करने का हकदार है तो न् यायालय, यिद वह ठीक समझे तो ऐसे पक्षकार को उतना युिक् तयुक् त समय देते हु ए िजसके भीतर िक सक्षम अिधकरण पं चाट को बाितल कर सकेगा, उस पंचाट को पर् वितत करने से इंकार कर सकेगा या उस पर िवचार करना स् थिगत कर सके गा ।
58. िवदेशी पंचाटᲂ को पर् वितत करना — जहां न् यायालय का यह समाधान हो जाता है िक िवदेशी पंचाट इस अध्याय के अधीन पर् वतर् नीय है, वहां पंचाट को न् यायालय की िडकर्ी समझा जाएगा । 59. अपीलनीय आदेश — ( 1 ) ऐसे िकसी आदेश से कोई अपील, िजसमᱶ—
(क) धारा 54 के अधीन पक्षकारᲂ को माध्यस्थम् के िलए िनिदष् ट करने ; और (ख) धारा 57 के अधीन िकसी िवदेशी पंचाट को पर् दिशत करने ,
से इंकार कर िदया गया हो, उस न् यायालय म ᱶ होगी, जो ऐसे आदेश की अपील सुनने के िलए िविध ᳇ारा पर् ािधकृ त हो ।
( 2 ) इस धारा के अधीन अपील मᱶ पािरत िकसी आदेश से ि᳇तीय अपील नहᱭ होगी, िकन्तु इस धारा मᱶ की कोई भी बात उच् चतम न् यायालय म ᱶ अपील करने के िकसी अिधकार पर पर् भाव न डाले गी और न उसे ले लेगी ।
66. सुलहकतार् का कितपय अिधिनयिमितयᲂ ᳇ारा बाध्य न होना — सुलहकतार्, िसिवल पर् िकर्या सं िहता, 1908 ( 1908 का 5 ) या भारतीय सा᭯य अिधिनयम, 1872 ( 1872 का 1 ) ᳇ारा बाध्य नहᱭ होगा । 67. सुलहकतार् की भूिमका — ( 1 ) सुलहकतार्, पक्षकारᲂ की उनके िववाद के सोहादर्र् पूणर् समझौते पर पहुं चने के उनके पर् यास म ᱶ , स् वतंतर् और िनष्पक्ष रीित से सहायता करेगा ।
( 2 ) सुलहकतार्, वस्तु िन᳧ा, औिचत्य और न् याय के िसांतᲂ से मागर्दिशत होगा िजनमᱶ अन्य बातᲂ के साथ-साथ, पक्षकारᲂ के अिधकारᲂ और बाध्यताᲐ, सं बंिधत ᳞ ापार की पर् थाᲐ और िववाद की पिरवतᱮ पिरिस्थितयᲂ का, िजनम ᱶपक्षकारᲂ के बीच कोई पूवर्वतᱮ कारबारी ᳞ वहार भी है , ध् यान रखा जाएगा ।
( 3 ) सुलहकतार्, सुलह कायर्वािहयᲂ का संचालन ऐसी रीित से करेगा, जो वह समुिचत समझे, िजसमᱶ मामले की पिरिस्थितयां , वे इच्छाएं जो पक्षकार ᳞क् त करे, िजसमᱶ िकसी पक्षकार का कोई ऐसा अनु रोध भी है िक सुलहकतार् मौिखक कथन सुने और िववाद के शीघर् िनपटारे की आवश्यकता का ध् यान रखा जाएगा ।
( 4 ) सुलहकतार्, सुलह कायर्वािहयᲂ के िकसी भी पर्कर् म पर िववाद के िनपटारे के िलए पर्स् ताव तै यार कर सकेगा । ऐसे पर्स् तावᲂ का िलिखत मᱶ होना आवश्यक नहᱭ होगा और उसके िलए कारणᲂ के िकसी कथन का साथ होना आवश्यक नहᱭ होगा ।
68. पर्शासिनक सहायता — सुलह कायर्वािहयᲂ का संचालन सुकर बनाने के िलए पक्षकार, या पक्षकारᲂ की सहमित से सुलहकतार्, िकसी उपयुक् त संस्था या ᳞ िक् त ᳇ारा पर् शासिनक सहायता की ᳞ वस्था कर सके गा । 69. सुलहकतार् और पक्षकारᲂ के बीच संपकर् — ( 1 ) सुलहकतार्, पक्षकारᲂ को िमलने के िलए आमंितर्त कर सके गा या उनमᱶ मौिखक या िलिखत रू प म ᱶसंपकर् कर सकेगा । वह पक्षकारᲂ से एक साथ या उनमᱶ से पर्त् ये क के साथ पृथक्तः िमल सके गा या संपकर् कर सकेगा ।
( 2 ) जब तक िक पक्षकारᲂ म ᱶउस स् थान के बारे मᱶ करार न हो जाए जहां सुलहकतार् के साथ बैठक होगी, ऐसा स् थान सु लह कायर्वािहयᲂ की पिरिस्थितयᲂ को ध् यान म ᱶरखते हु ए, पक्षकारᲂ से परामशर् करने के पश् चात्, सुलहकतार् ᳇ारा अवधािरत िकया जाएगा ।
70. जानकारी का पर् कटीकरण — जब सुलहकतार् िकसी पक्षकार से िववाद से संबंिधत तथ्यपरक जानकारी पर् ाप् त करता है, तब वह, दूसरे पक्षकार को उस जानकारी का सार पर् कट करे गा िजससे िक दूसरे पक्षकार को कोई ऐसा स् पष् टीकरण पर्स् तुत करने का अवसर िमल सके िजसे वह समुिचत समझे :
परन्तु जब कोई पक्षकार, इस िविनिदष्ट शतर् के अधीन रहते हु ए सु लहकतार् को कोई जानकारी देता है िक उसे गोपनीय रखा जाए, तब सुलहकतार् उक्त जानकारी को दू सरे पक्षकार को पर् कट नहᱭ करे गा ।
71. पक्षकारᲂ का सु लहकतार् से सहयोग — पक्षकार, सावना से सुलहकतार् से सहयोग करᱶगे और िवशेष रू प म ᱶिलिखत सामगर्ी पर्स् तु त करने, सा᭯य दे ने और बैठकᲂ मᱶ सिम्मिलत होने के सुलहकतार् के अनुरोध के अनुपालन का पर् यास कर ᱶ गे । 72. िववादᲂ के िनपटारे के िलए पक्षकारᲂ ᳇ारा सु झाव — येपर्त् क पक्षकार, स् वपर्े रणा से या सुलहकतार् के आमन्तर्ण पर, िववाद के िनपटारे के िलए सुझाव सुलहकतार् को पर्स् तु त करेगा । 73. समझौता करार — ( 1 ) जब सुलहकतार् को यह पर् तीत हो िक िकसी समझौते के ऐसे तत्व मौजू द हᱹ जो पक्षकारᲂ को स् वीकायर् हो सकते हᱹ, तब वह िकसी संभािवत समझौते के िनबंधन तैयार करेगा और उन्ह ᱶ पक्षकारᲂ को उनके िवचार ᳞क् त करने के िलए देगा । पक्षकारᲂ के िवचार पर् ाप् त होने के पश् चात्, सुलहकतार् ऐसे िवचारᲂ को ध् यान म ᱶ रखते हु ए िकसी सं भािवत समझौते के िनबन्धन पु नः तैयार कर सकेगा ।
( 2 ) यिद पक्षकार, िववाद के िकसी समझौते पर करार करते हᱹ तो वे एक िलिखत समझौता करार तैयार करा सकᱶगे और उस पर हस्ताक्षर कर सक ᱶगे । यिद पक्षकारᲂ ᳇ारा अनु रोध िकया जाए, तो सुलहकतार् समझौता करार तैयार कर सकेगा या तैयार करने मᱶ पक्षकारᲂ की सहायता कर सके गा ।
( 3 ) जब पक्षकार समझौता करार पर हस्ताक्षर कर ᱶगे तब वह अंितम होगा और पक्षकारᲂ तथा उनके अधीन दावा करने वाले ᳞ िक्तयᲂ पर आबकर होगा ।
( 4 ) सुलहकतार्, समझौता करार को अिधपर्मािणत करे गा और उसकी एक पर् ित पर्त् ये क पक्षकार को दे गा ।
74. समझौता करार की पर् ािस्थित और पर् भाव — समझौता करार की वही पर् ािस्थित और पर् भाव होगा मानो वह िववाद के सार पर करार पाए गए िनबन्धनᲂ पर धारा 30 के अधीन िकसी माध्यस्थम् अिधकरण ᳇ारा िदया गया कोई माध्यस्थम् पंचाट है । 75. गोपनीयता — तत्समय पर् वृ ᱫ िकसी अन्य िविध म ᱶ िकसी बात के होते हु ए भी, सु लहकतार् और पक्षकार, सुलह कायर् वािहयᲂ से संबंिधत सभी बातᱶ गोपनीय रखᱶगे । उसके िसवाय िक जहां िकर्यान्वयन और संपर् वतर् न के पर् योजनᲂ के िलए उसका पर् कटीकरण आवश्यक हो, गोपनीयता का िवस्तार समझौता करार तक भी होगा ।
76. सुलह कायर्वािहयᲂ का समापन — सुलह कायर्वािहयᲂ का— (क) करार की तारीख को, पक्षकारᲂ ᳇ारा समझौता करार पर हस्ताक्षर करके ; या (ख) घोषणा की तारीख को, पक्षकारᲂ के साथ परामशर् करने के पश् चात् सुलहकतार् की इस पर् भाव की िलिखत घोषणा ᳇ारा िक सुलह के िलए आगे पर् यास अब न् यायसं गत नहᱭ है ; या (ग) घोषणा की तारीख को, पक्षकारᲂ ᳇ारा सु लहकतार् को संबोिधत इस पर् भाव की िलिखत घोषणा ᳇ारा िक सु लह कायर्वािहयᲂ का समापन िकया जाता है ; या (घ) घोषणा की तारीख को, एक पक्षकार ᳇ारा दू सरे पक्षकार को और सु लहकतार् को, यिद िनयुक् त िकया गया है, इस पर् भाव की िलिखत घोषणा ᳇ारा िक सु लह कायर्वािहयᲂ का समापन िकया जाता है,
समापन हो जाएगा ।
77. माध्यस्थम् या न् याियक कायर् वािहयᲂ का सहारा लेना — पक्षकार, सु लह कायर्वािहयᲂ के दौरान, उस िववाद की बाबत, जो सुलह कायर्वािहयᲂ की िवषयवस्तु है, उसके िसवाय िक जहां िकसी पक्षकार की यह राय है िक उसके अिधकारᲂ के संरक्षण के िलए ऐसी कायर्वािहयां आवश्यक ह ᱹ वहां वह माध्यस्थम् या न् याियक कायर् वािहयां आरम्भ कर सकता है , कोई माध्यस्थम् या न् याियक कायर् वािहयां आरंभ नहᱭ करᱶगे । 78. खचर् — ( 1 ) सुलह कायर्वािहयᲂ के समापन पर सुलहकतार्, सुलह का खचर् िनयत करेगा और उसकी िलिखत सूचना पक्षकारᲂ को देगा ।
( 2 ) उपधारा ( 1 ) के पर् योजन के िलए, “खचᲄ” से िनम्निलिखत से संबंिधत युिक् तयुक् त खचर् अिभपर्े त हᱹ— (क) सुलहकतार् की और पक्षकारᲂ की सहमित से सुलहकतार् ᳇ारा अनुरोध िकए गए सािक्षयᲂ की फीस और ᳞ य ; (ख) पक्षकारᲂ की सहमित से सुलहकतार् ᳇ारा अनुरोध की गई कोई िवशेषज्ञ सलाह ;
(ग) धारा 64 की उपधारा ( 2 ) के खंड (ख) और धारा 68 के अनुसरण मᱶ उपबंिधत कोई सहायता ; (घ) सुलह कायर्वािहयᲂ और समझौता करार के संबंध मᱶ उपगत कोई अन्य ᳞ य ।
( 3 ) जब तक िक समझौता करार मᱶ िकसी िभन् न पर् भाजन का उपबं ध न िकया गया हो, पक्षकारᲂ ᳇ारा बराबर-बराबर खचर् वहन िकए जाएंगे । िकसी पक्षकार ᳇ारा उपगत सभी अन्य ᳞ य, उसी पक्षकार ᳇ारा वहन िकए जाएं गे ।
79. िनक्षे प — ( 1 ) सुलहकतार्, धारा 78 की उपधारा ( 2 ) मᱶ िनिदष् ट खचᲄ को, िजनके उपगत होने की वह पर्त् याशा करता है , अिगर्म के रू प म ᱶसमान रकम का िनक्षे प करने के िलए पर्त् ये क पक्षकार को िनदे श दे सकेगा ।
( 2 ) सुलह कायर्वािहयᲂ के दौरान, सुलहकतार्, पर्त् ये क पक्षकार को समान रकम का अनु पूरक िनक्षे प करने के िलए िनदेश दे सकेगा ।
( 3 ) यिद उपधारा ( 1 ) और उपधारा ( 2 ) के अधीन अपेिक्षत िनक्षेपᲂ का पूणर् सं दाय दोनᲂ पक्षकारᲂ ᳇ारा तीस िदन के भीतर नहᱭ िकया जाता है तो सुलहकतार्, कायर्वािहयᲂ को िनलंिबत कर सकेगा या पक्षकारᲂ को कायर् वािहयᲂ के समापन की िलिखत घोषणा कर सकेगा, जो उक् त घोषणा की तारीख को पर् भावी होगी ।
( 4 ) सुलह कायर्वािहयᲂ के समापन पर, सुलहकतार्, पर् ाप् त िनक्षे पᲂ का लेखा पक्षकारᲂ को दे गा और ᳞ य न िकया गया कोई अितशेष पक्षकारᲂ को वापस करे गा ।
80. अन्य कायर् वािहयᲂ मᱶ सुलहकतार् की भूिमका — जब तक िक पक्षकारᲂ ᳇ारा अन्यथा करार न िकया गया हो, — (क) सुलहकतार् िकसी ऐसे िववाद के बारे मᱶ जो िकसी सुलह कायर्वाही को िवषय-वस्तु है, िकसी माध्यस्थम् या न् याियक कायर् वाही मᱶ माध्यस्थम् के रू प म ᱶया िकसी पक्षकार के पर् ितिनिध या परामशᱮ के रू प म ᱶकायर् नहᱭ करेगा ; (ख) पक्षकारᲂ ᳇ारा सुलहकतार् को िकसी माध्यस्थम् या न् याियक कायर् वािहयᲂ मᱶ साक्षी के रू प म ᱶपेश नहᱭ िकया जाएगा । 81. अन्य कायर् वािहयᲂ मᱶ सा᭯य की गर् ा᳭ता — पक्षकार, माध्यस्थम् या न् याियक कायर् वािहयᲂ मᱶ, चाहे ऐसी कायर्वािहयां उस िववाद से संबंिधत हᲂ या न हᲂ, जो सुलह कायर्वािहयᲂ की िवषय-वस्तु हᱹ—
(क) िववाद के संभा᳞ िनपटारे की बाबत दूसरे पक्षकार ᳇ारा ᳞क् त िकए गए िवचारᲂ या िदए गए सुझावᲂ पर ; (ख) सुलह कायर्वािहयᲂ के अनुकर्म म ᱶदूसरे पक्षकार ᳇ारा की गई स् वीकृ ितयᲂ पर ;
(ग) सुलहकतार् ᳇ारा िदए गए पर्स् तावᲂ पर ;